बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र
अध्याय - 11
जॉन डीवी
(John Dewey)
प्रश्न- जॉन डीवी के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालते हुए उनके द्वारा निर्धारित शिक्षा व्यवस्था के प्रत्येक पहलू को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
फलवाद का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण डीवी का शिक्षा दर्शन है। आधुनिक काल में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में जनतन्त्रीय शिक्षा का सबसे बड़ा व्याख्याता जॉन डीवी को माना जाता है। डीवी का जन्म सन् 1859 में हुआ था। 19 वर्ष की अवस्था में इसने दर्शनशास्त्र में सबसे अधिक अंक प्राप्त करके बरमाण्ट विश्वविद्यालय से बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद मिनेसोटा, मिशीगन और शिकागो विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के साथ-साथ शिक्षाशास्त्र भी पढ़ाया। तभी से उसे शिक्षा के क्षेत्र में रुचि हो गयी। इसने बालकों की शिक्षा के लिये शिकागो में प्रोग्रेसिव स्कूल नामक एक विद्यालय की स्थापना, जिसमें, करके सीखने के सिद्धान्त, को कार्य रूप में परिणित किया गया। इस विद्यालय में डीवी ने अपने फलवाद दर्शन के आधार पर शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रयोग किये। शिकागो छोड़कर वह कोलम्बिया विश्वविद्यालय पहुँचे और वहाँ पर शिक्षा और दर्शन के क्षेत्र मे अनेक महत्वपूर्ण सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। यहाँ पर सन् 1930 तक काम करने के बाद डीवी ने अवकाश प्राप्त किया। सन् 1932 में वह अनेक सामाजिक, शिक्षा सम्बन्धी और मनोवैज्ञानिक संस्थाओं का सभापति चुना गया। उसे महान् दार्शनिक माना गया और देश-विदेश में उसे सम्मान दिया गया। इसी समय उसे डॉक्टर की उपाधि से भी विभूषित किया गया। उसके विचारों का प्रभाव अमेरिका से बाहर रूस, तुर्की, चीन आदि दूर-दूर के देशों में देखा गया। आधुनिक जन्तन्त्रीय शिक्षा प्रणाली पर डीवी के विचारों की अमिट छाप है।
डीवी ने दर्शन - शास्त्र पर अनेक पुस्तकें लिखी, जिनमे से मुख्य 'Democracy and Education' है। उसने जनतन्त्र में शिक्षा व्यवस्था की व्याख्या की जो कि उसकी प्रसिद्ध पुस्तक से मालूम पड़ती है। विद्यालय और समाज के सम्बन्ध को लेकर उसने 'The School and The Society' की रचना की। आदर्श विद्यालय का चित्र उपस्थित करते हुये उसने 'Schools of Tomorrow' तथा 'The School and The Child' नामक पुस्तकों की रचना की। वह मानव संस्कृति में जनतन्त्रीय मूल्यों को सर्वोच्च स्थान देता था। इस सम्बन्ध में उसकी प्रसिद्ध पुस्तक 'Freedom and Culture' में मानव संस्कृति में स्वतन्त्रता के महत्व की चर्चा की गयी है। केवल दर्शन और शिक्षा- सिद्धान्त के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि डीवी का शिक्षा मनोविज्ञान में भी महत्वपूर्ण योगदान है। चिन्तन के विषय को लेकर उसने हम कैसे सोचते हैं, इस विषय पर 'How We Think' नामक पुस्तक की रचना की।
शिक्षा का अर्थ
(Meaning of Education)
डीवी शिक्षा को एक अनिवार्य सामाजिक गति मानता है। उसके मतानुसार बिना शिक्षा के समाज प्रगति नहीं कर सकता। इसी के आधार पर सभ्यता की रक्षा व विकास होता है। डीवी के अनुसार, “शिक्षा अनुभव के पुनः निर्माण व पुनर्रचना का एक क्रम है जो कि मनुष्य की क्षमता में वृद्धि करने के द्वारा अनुभव को और भी अधिक सामाजिक महत्व प्रदान करता है।" मनुष्य के बाह्य व आन्तरिक अनुभव सदा परिवर्तित होते रहते हैं। उसे समय-समय पर नवीन अनुभवों व समस्याओं का सामना करना होता है। अतः उसके क्रिया-कलाप भी उन्हीं के अनुसार बदलते रहते हैं। इसी प्रकार अनुभव का संशोधन, पुनर्संगठन अथवा पुनः निर्माण होता है। डीवी इसी वृद्धि, परिवर्तन अथवा संशोधन को शिक्षा कहकर पुकारता है। इस प्रकार वह "शिक्षा का अर्थ क्रम में सन्निहित करता है।" वह यह नहीं मानता कि बच्चे के स्कूल जाने पर ही शिक्षा का आरम्भ होता है। शिक्षा तो उसके जन्म से ही प्रारम्भ हो जाती है और जीवन भर चलती रहती है। शिक्षा जीवन की तैयारी न होकर स्वयं जीवन है।
शिक्षा का उद्देश्य
(Aims of Education)
डीवी के अनुसार शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य बालक की शक्तियों का विकास किस प्रकार से होगा, इसके लिये सामान्य सिद्धान्त निश्चित नहीं किया जा सकता है क्योंकि भिन्न-भिन्न रुचियों और योग्यताओं के बालकों में विकास भिन्न-भिन्न प्रकार से होता है। अध्यापक को बालक की योग्यताओं को ध्यान में रखना होता है। उसे निर्देशन देना चाहिए। डीवी शिक्षा के लक्ष्य को उन्मुक्त छोड़ देना चाहता है, क्योंकि यदि पहले से निश्चित कर लिया जायेगा और बालक को उसी ओर जाने की कोशिश की जायेगी तो उससे हानि हो सकती है। शिक्षा बालक के लिये है, बालक शिक्षा के लिये नहीं है। शिक्षा का उद्देश्य, "ऐसा वातावरण तैयार करना है जिसमें कि प्रत्येक बालक को समस्त मानव जाति की सामाजिक जागृति में सक्रिय रहकर योगदान करने का अवसर मिले।" फलवादी दृष्टि से शिक्षा का उद्देश्य बालक में सामाजिक कुशलता (social efficiency) उत्पन्न करना है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज से बाहर रहकर उसका विकास नहीं हो सकता। सामाजिक जीवन में सभी का विकास होता है। इसलिये शिक्षा का उद्देश्य सामाजिक जीवन में दक्षता प्राप्त करना है। फलवादी शिक्षा का उद्देश्य जनतन्त्रीय मूल्यों की स्थापना है। बालक में जनतन्त्रीय मूल्यों का विकास किया जाना चाहिए। शिक्षा के द्वारा हम ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जिसमें व्यक्ति-व्यक्ति में कोई भेद न हो, सभी पूर्ण स्वतन्त्रता और सहयोग से काम करें। प्रत्येक मनुष्य को अपनी स्वाभाविक प्रवृत्तियों, इच्छाओं और आकांक्षाओं के अनुसार विकसित होने का अवसर मिले, सभी को समान अधिकार दिये जायें। ऐसा समाज तभी बन सकता है जबकि व्यक्ति और समाज के हित में कोई मौलिक अन्तर न माना जाये। अस्तु, शिक्षा के द्वारा मनुष्य में परस्पर सहयोग और सामंजस्य की स्थापना होनी चाहिये। विद्यालय जनतन्त्रीय समाज का एक सूक्ष्म रूप है। उसमें बालक में जनतन्त्रीय गुणों का विकास किया जाना चाहिये। इस विकास में नैतिकता मुख्य है। नैतिक विकास सक्रियता से होता है। इससे व्यक्ति में कुशलता और चरित्र का निर्माण होता है। विद्यालय के विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेकर बालकों मे उत्तरदायित्व वहन करने की शक्ति बढ़ती है। शिक्षा के क्षेत्र में सभी बालकों और बालिकाओं को समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिए और उनकी योग्यता के अनुसार उनका विकास होना चाहिए।
शिक्षा का पाठ्यक्रम
(Curriculum of Education)
डीवी शिक्षा-प्रक्रिया के दो अंग मानता था - मनोवैज्ञानिक और सामाजिक।
1. मनोवैज्ञानिक - शिक्षा का पाठ्यक्रम और विधि बालक की मूल प्रवृत्तियों और शक्तियों के आधार पर निश्चित की जानी चाहिए। बालक की शिक्षा उसकी रुचियों के अनुसार होनी चाहिये। उसकी रुचियों का पता लगाकर ही विभिन्न अवस्थाओं में विद्यालय का पाठ्यक्रम निर्धारित किया जाना चाहिये।
2. सामाजिक अंग - समस्त शिक्षा प्रजाति की सामाजिक चेतना में शक्ति के भाग लेने से प्रारम्भ होती है। इसलिये विद्यालय में ऐसा वातावरण बनाया जाना चाहिये जिससे सक्रिय रहकर बालक मानव-जाति की सामाजिक जागृति में सफलतापूर्वक भाग ले सकें। इससे उसके आचरण में सुधार होता है और उसके व्यक्तित्व तथा शक्तियों का विकास होता है।
शिक्षा-पद्धति
(Education System)
सफल शिक्षा मनोवैज्ञानिक होने के कारण डीवी ने शिक्षा पद्धति के विषय में महत्वपूर्ण विचार उपस्थित किये हैं जो कि उसकी पुस्तकों How We Think तथा Interest and Effort in Education में पाये जा सकते हैं।
उसका सबसे प्रसिद्ध सिद्धान्त 'करके सीखने का सिद्धान्त' है जिसके अनुसार सबसे अच्छी शिक्षा-पद्धति वह है जिसमें बालक स्वयं कार्य करके विभिन्न विषयों को सीखें। शिक्षक को भाषण के द्वारा अपने विचार बालक के मन में नहीं भरने हैं बल्कि उसे ऐसे काम करने को देने हैं जिनसे उसकी विभिन्न शक्तियों का स्वाभाविक विकास हो सके। काम करते समय ही उसे उससे सम्बन्धित बातों का ज्ञान कराया जाना चाहिये और व्यावहारिक समस्याओं को हल करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। समस्याओं को हल करने से बालक के अनुभव में वृद्धि होती है।
डीवी के अनुसार शिक्षा-पद्धति में बालक के जीवन, क्रियाओं और विषयों में एकता स्थापित की जानी चाहिये। बालक के जीवन की क्रियाओं के चारों ओर सब विषय इस तरह बांध दिये जाने चाहिए कि क्रियाओं के द्वारा उनका ज्ञान प्राप्त हो सके। डीवी का यह सिद्धान्त गाँधीजी ने अपने बुनियादी शिक्षा के कार्यक्रम में अपनाया था। बालक की क्रियाएँ भी पहले से निर्धारित नहीं होनी चाहिये।
शिक्षक का स्थान
(Place of Teacher )
फलवादी शिक्षा योजना में शिक्षक को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। शिक्षक समाज का सेवक है। उसे विद्यालय में ऐसा वातावरण निर्माण करना है जिसमें पलकर बालक के सामाजिक व्यक्तित्व का विकास हो सके और वह जनतन्त्र का योग्य नागरिक बन सके। डीवी ने शिक्षक को यहाँ तक महत्व दिया है कि उसे समाज में ईश्वर का प्रतिनिधि ही कह दिया है। शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में डीवी ने महत्वपूर्ण विचार उपस्थित किये हैं। विद्यालय में शिक्षक को किस प्रकार व्यवहार करना चाहिए, इस विषय में डीवी ने शिक्षा मनोविज्ञान और जनतन्त्रीय मूल्यों को निर्देशन माना है। विद्यालय में स्वतन्त्र और समानता के मूल्य को बनाये रखने के लिये शिक्षक को अपने को बालकों से बड़ा नहीं समझना चाहिए। उसे आज्ञाओं और उपदेशों के द्वारा अपने विचारों और प्रवृत्तियों को बालक पर लादने का प्रयास नहीं करना चाहिए। उसे बालकों का निरीक्षण करके उनकी रुचियों, योग्यताओं और गतिविधियों को समझकर उनके अनुरूप कार्यों में लगाना चाहिये। इस प्रकार विद्यालय में शिक्षा बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं को ध्यान में रखकर दी जानी चाहिये। इससे विद्यालय के संचालन में कठिनाई बहुत कम हो जाती है। शिक्षक को चाहिए कि बालकों को ऐसी क्रियाओं में प्रवृत्त करे कि उनमें सोचने-विचारने की योग्यता विकसित हो।
अनुशासन
(Discipline)
शिक्षक के उपयुक्त व्यवहार से अनुशासन बनाये रखना आसान हो जाता है। डीवी ने अनुशासन की प्रचलित विधियों की आलोचना की। उसने बतलाया कि अनुशासन बनाये रखने के लिये बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियों को कुंठित करने का प्रयास अनुचित है। वास्तव में, अनुशासन केवल बालक के निजी व्यक्तित्व पर ही निर्भर नहीं है। उसका सामाजिक परिस्थितियों से घनिष्ठ सम्बन्ध है। सच्चा अनुशासन सामाजिक अनुशासन है और यह बालक के विद्यालय के सामूहिक कार्यों में भाग लेने से उत्पन्न होता है। अस्तु, विद्यालय में ऐसा वातावरण उत्पन्न किया जाना चाहिए कि बालक परस्पर सहयोग से रहने का अभ्यास करें। विद्यालय में एक-से उद्देश्य लेकर सामाजिक, नैतिक, बौद्धिक और शारीरिक कार्यों में एक साथ भाग लेने से बालकों में अनुशासन उत्पन्न होता है और उन्हें नियमित रूप से काम करने की आदत पड़ती है। विद्यालयों के कार्यक्रमों का बालक के चरित्र-निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है। अस्तु, बालक को प्रत्यक्ष रूप से उपदेश न देकर उसे ऐसा सामाजिक परिवेश दिया जाना चाहिए और उसके सामने ऐसे उदाहरण उपस्थित किये जाने चाहिए कि उसमें आत्मानुशासन उत्पन्न हो ओर वह सही अर्थों में सामाजिक प्राणी बने। यह ठीक है कि विद्यालय में शान्तिपूर्ण वातावरण होने से काम अधिक अच्छा होता है। किन्तु शान्ति साधन है। शिक्षक को तो अपनी ओर से बालकों को उनकी प्रवृत्तियों के अनुसार विविध प्रकार के कामों में लगाये रखना चाहिये और यदि इस प्रक्रिया से कभी-कभी कुछ अशान्ति भी उत्पन्न हो तो उसे दूर करने के लिये बालक की क्रियाओं पर रोक-टोक करना उचित नहीं है। आत्मानुशासन उत्पन्न करने में उत्तरदायित्व की भावना का विशेष महत्व है। उसे उत्पन्न करने के लिये विद्यालय के अधिकतर काम स्वयं विद्यार्थियों को सौंप दिये जाने चाहिये। इसमें भाग लेने से उनमें अनुशासन की भावना उत्पन्न होगी।
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- प्रश्न- शिक्षा के संकुचित तथा व्यापक अर्थों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की अवधारणा स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा की परिभाषा देते हुए इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्वरूपों की व्याख्या कीजिए। शिक्षा तथा साक्षरता एवं अनुदेशन में क्या मूलभूत अन्तर है?
- प्रश्न- शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों की विवेचना कीजिए तथा इन दोनों उद्देश्यों में समन्वय को समझाइए।
- प्रश्न- "दर्शन जिसका कार्य सूक्ष्म तथा दूरस्थ से रहता है, शिक्षा से कोई सम्बन्ध नहीं रख सकता जिसका कार्य व्यावहारिक और तात्कालिक होता है।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए तथा शिक्षा के लिए इनके निहितार्थ स्पष्ट कीजिए - (i) तत्व-मीमांसा, (ii) ज्ञान-मीमांसा, (iii) मूल्य-मीमांसा।
- प्रश्न- शिक्षा का दर्शन पर प्रभाव बताइये।
- प्रश्न- अनुशासन को दर्शन कैसे प्रभावित करता है?
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन से आप क्या समझते हैं? परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन क्या है? वेदान्त दर्शन के सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन व शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। वेदान्त दर्शन में प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या व शिक्षण विधियों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शिक्षा में योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा ज्ञान मीमांसा एवं मूल्य मीमांसा तथा उनके शैक्षिक अभिप्रेतार्थ की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षार्थी की अवधारणा बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन व अनुशासन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अद्वैत शिक्षा के मूल सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन में दी गयी ब्रह्म की अवधारणा व उसके रूप पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन के अनुसार आत्म-तत्व से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
- प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये |
- प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
- प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
- प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
- प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
- प्रश्न- आदर्शवाद से आप क्या समझते हैं? आदर्शवाद के मूलभूत सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। आदर्शवाद के शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षक की भूमिका को समझाइए।
- प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षार्थी का क्या स्थान है?
- प्रश्न- आदर्शवाद में विद्यालय की परिकल्पना कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद में अनुशासन को समझाइए।
- प्रश्न- आदर्शवाद के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। प्रकृतिवाद के रूपों एवं सिद्धान्तों को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। प्रकृतिवादी शिक्षा की विशेषताएँ तथा उद्देश्य बताइए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद के शिक्षा पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "प्रकृतिवाद आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में बाजी हार चुका है।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवादी अनुशासन एवं प्रकृतिवादी अनुशासन की क्या संकल्पना है? आप किसे उचित समझते हैं और क्यों?
- प्रश्न- प्रकृतिवादी शिक्षण विधियों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद तथा शिक्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद की तत्व मीमांसा क्या है?
- प्रश्न- प्रकृतिवाद की ज्ञान मीमांसा क्या है?
- प्रश्न- प्रकृतिवाद में शिक्षक एवं छात्र सम्बन्ध स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- प्रकृतिवादी अनुशासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- शिक्षा की प्रयोजनवादी विचारधारा के प्रमुख तत्वों की विवेचना कीजिए। शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण विधियों, पाठ्यक्रम, शिक्षक तथा अनुशासन के सम्बन्ध में इनके विचारों को प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवादियों तथा प्रकृतिवादियों द्वारा प्रतिपादित शिक्षण विधियों, शिक्षक तथा अनुशासन की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवाद का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण-विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
- प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्त्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
- प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधि को स्पष्ट करते हुए स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द के अनुसार अनुशासन का अर्थ बताइए। शिक्षक, शिक्षार्थी तथा विद्यालय के सम्बन्ध में स्वामी जी के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में विवेकानन्द के क्या योगदान हैं? लिखिए।
- प्रश्न- जन-शिक्षा के विषय में स्वामी विवेकानन्द के विचार बताइए।
- प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द की मानव निर्माणकारी शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- डॉ. भीमराव अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन का क्या अभिप्राय है? बताइए।
- प्रश्न- जाति भेदभाव को खत्म करने के लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर की शिक्षा दर्शन की शिक्षण विधियाँ क्या हैं? बताइए। शिक्षक व शिक्षार्थी सम्बन्ध का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद के सन्दर्भ में रूसो के विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं हेतु रूसो द्वारा प्रतिपादित शिक्षा योजना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रूसो की 'निषेधात्मक शिक्षा' की संकल्पना क्या है? सोदाहरण समझाइए।
- प्रश्न- रूसो के प्रमुख शैक्षिक विचार क्या हैं?
- प्रश्न- जॉन डीवी के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालते हुए उनके द्वारा निर्धारित शिक्षा व्यवस्था के प्रत्येक पहलू को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जॉन डीवी के उपयोगिता शिक्षा सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक शिक्षण विधियों एवं पाठ्यक्रम के निर्धारण में जॉन डीवी के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बहुलवाद से क्या तात्पर्य है? राज्य के विषय में बहुलवादियों के क्या विचार हैं?
- प्रश्न- बहुलवाद और बहुलसंस्कृतिवाद का क्या आशय है?
- प्रश्न- बहुलवाद, बहुलवादी शिक्षा से आपका क्या आशय है? इसकी विधियाँ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ एवं विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की प्रक्रिया को बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में जाति, वर्ग एवं लिंग की भूमिका बताइए।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं? विद्यालय संगठन का अर्थ, उद्देश्य एवं इसकी आवश्यकताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन की परिभाषाए देते हुए विद्यालय संगठन की विशेषताओं का वर्णन करें।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन एवं शैक्षिक प्रशासन में सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? इनसे सम्बन्धित धारणाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के दृष्टिकोण से शिक्षा के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए |
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में विद्यालय की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रारूप बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं? सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न कारक एवं शिक्षा की भूमिका का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न रूपों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उच्चगामी गतिशीलता क्या है?
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के अधिकार पत्र की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मानव अधिकारों की रक्षा के लिए किये गये विशेष प्रयत्न इस दिशा में कितने कारगर हैं? विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं मानव अधिकारों में अन्तर लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं नीति-निदेशक तत्वों में अन्तर बतलाइये।
- प्रश्न- विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सम्पत्ति के अधिकार पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 'निवारक निरोध' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- क्या मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है?
- प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों की प्रकृति तथा इनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- 'अधिकार तथा कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्तव्यों का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक कर्तव्यों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों से आप क्या समझते हैं? संविधान में इनके उद्देश्य एवं महत्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान में वर्णित नीति निदेशक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों तथा नीति निदेशक सिद्धान्तों में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों के क्रियान्वयन की आलोचनात्मक व्याख्या अपने शब्दों में कीजिए।
- प्रश्न- नीति-निदेशक तत्वों का अर्थ बताइए।
- प्रश्न- राज्य के उन नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख कीजिये जिन्हें गांधीवाद कहा जाता है।
- प्रश्न- नीति निदेशक सिद्धान्तों का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों की प्रकृति अथवा स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय विकास में शिक्षा की भूमिका को विस्तार से बताइए।
- प्रश्न- सतत् विकास के लिए शिक्षा से आप क्या समझते हैं? सतत् विकास में शिक्षा की अवधारणा और उत्पत्ति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सहस्राब्दी विकास लक्ष्य मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स का निर्धारण कौन-सा संस्थान करता है?
- प्रश्न- एमडीजी और एसडीजी के मध्य अन्तर बताइए।
- प्रश्न- ज्ञान अर्थव्यवस्था की राह पर विकास के संकेतक के रूप में शिक्षा को संक्षेप में बताइए। ज्ञान अर्थव्यवस्था के महत्व को भी बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् शिक्षा के प्रमुख अभिकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स (MDGs) व सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) क्या है? बताइए।